Raksha Bandhan 2025 : रक्षाबंधन भारत का एक प्रमुख त्योहार है। यह भाई-बहन के पवित्र प्रेम और विश्वास के प्रतीक है। रक्षाबंधन हर साल सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है इस साल यह त्योहार 9 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन बहन अपने भाई के कलाई पर राखी बांधती है और उनके लंबी आयु की कामना करती है। भाई-बहनों को उपहार देते हैं और उनकी सुरक्षा का वचन देते हैं। यह त्योहार न सिर्फ रक्षासूत्र से बल्कि प्रेम, विश्वास और कर्तव्य की डोर से भी बंधा होता है। क्या आपको पता है कि रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता हैं? आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथाओं के बारे में।
रानी कर्णावती और बादशाह हुमायूं
यह एक ऐतिहासिक कथा है। रक्षाबंधन पर रानी कर्णावती और बादशाह हुमायूं की कहानी सबसे ज्यादा प्रचलित है। कहा जाता है कि रानी कर्णावती चित्तौड़ की रानी थीं और बादशाह हुमायूं मुगल सल्तनत के बादशाह थे। एक बार गुजरात के बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। इसके बाद रानी कर्णावती ने मुगल सल्तनत के बादशाह हुमांयूं से मदद मांगी। रानी ने बादशाह को एक संदेश भेजा साथ में एक रक्षासूत्र यानी राखी भेजी। इस राखी का मान रखते हुए बादशाह ने रानी की मदद की और चित्तौड़ की तरफ रुख किया। हालांकि मुगल बादशाह उस समय बंगाल के साथ युद्ध की तैयारी में थें लेकिन भाई-बहन के पवित्र बंधन की लाज रखते हुए उन्होंने रानी कर्णावती का साथ दिया। कहा जाता है कि बादशाह हुमायूं के पहुंचने से पहले ही रानी कर्णावती ने जोहार कर लिया था। रानी को न बचा पाने का बादशाह हुमायूं को बहुत दुख था। इसके बाद उन्होंने चित्तौड़ की गद्दी पर उनके बेटे राणा विक्रमादित्य को बैठाया।
द्रौपदी और श्रीकृष्ण
रक्षाबंधन का संबंध द्रौपदी और श्रीकृष्ण से भी है। कहा जाता है कि एक बार श्रीकृष्ण को युद्ध में चोट लगी और खून बहने लगा। द्रौपदी ने अपनी साड़ी एक एक टुकड़ा फाड़ कर श्री कृष्ण की उंगली में बांध दिया। श्रीकृष्ण द्रौपदी के स्नेह को देख भावुक हो गए। तभी उन्होंने द्रौपदी को रक्षा का वचन दिया। श्रीकृष्ण ने हमेशा द्रौपदी की भी रक्षा की। चीर हरण के समय जब सारी राजसभा मूक दर्शक बन अन्याय को देख रही थी। तब श्रीकृष्ण ने ही उनकी मदद की।
इंद्राणी और इंद्रदेव
इंद्र देव का असुरों से युद्ध चल रहा था उस समय लेकिन इस युद्ध में इंद्र देव हार के समीप थे। इस स्थिति को देखते हुए इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी ने एक पवित्र धागा इंद्र देव की कलाई पर बांध दिया। इस रक्षा सूत्र के बाद इंद्रदेव युद्ध जीत गए।
डिस्क्लेमर- इस लेख में दी गई जानकारी इंटरनेट, लोक मान्यताओं और अन्य माध्यमों से ली गई है। जागरण टीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है।