Ram Navami 2025 Puja Vidhi: चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि रामनवमी मनाया जाता है। रामनवमी का त्योहार भगवान राम को समर्पित है। इस दिन को भगवान राम के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पूरे विधि-विधान से प्रभु राम की पूजा करती है। भगवान को भोग लगाया जाता है। इससे श्रीराम की कृपा भक्त पर बनी रहती है। इस दिन मंदिरों को सजाया जाता है भंडारों का आयोजन किया जाता है। इस साल रामनवमी 6 अप्रैल को मनाई जाएगी। जानें भगवान के मंत्र और आरती।
भगवान राम पूजा मंत्र
श्री रामचन्द्राय नमः
ऊं रामचंद्राय नमः
रां रामाय नमः
ऊं नमो भगवते रामचंद्राय
नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट
लोचन निजपद जंत्रित जाहि प्राण केहि बाट
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥
श्री राम जी की पूजा विधि
- रामनवमी के दिन सुबह जल्दी उठें। दैनिक कार्यों के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें।
- इसके बाद भगवान राम की विधिपूर्वक पूजा करें।
- भगवान राम को रसगुल्ला, लड्डू, हलवा, इमरती, खीर का भोग लगाएं।
- इसके बाद राम भगवान के मंत्रों जप करें और उनकी आरती करें।
- राम नवमी के दिन श्रीरामचरितमानस और सुंदरकांड का पाठ करें।
- रामनवमी के दिन उपवास रखा जाता है, इसलिए इस दिन व्रत के नियम का ध्यान रखें।
भगवान राम की आरती
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।