Varuthini Ekadashi 2025: वरूथिनी एकादशी पर ऐसे करें पूजा। जाने पूजा विधि, आरती और मंत्र

13 Apr, 2025
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Varuthini Ekadashi 2025 Puja Vidhi: वरूथिनी एकादशी का व्रत वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। वरूथिनी एकादशी का बहुत महत्व है। यह भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को समर्पित है। इस दिन विधि पूर्वक भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। व्रत रखने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य की वृद्धि होती है। पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति करता है। इस दिन पूजा का बहुत महत्व होता है। आइए जानते हैं पूजा विधि, मंत्र और आरती। 

वरूथिनी एकादशी की पूजा विधि 

  • वरूथिनी एकादशी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठें। 
  • स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें। 
  • घर और मंदिर की अच्छी तरह से साफ-सफाई करें। 
  • इसके बाद व्रत का संकल्प लें। 
  • भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। 
  • मंदिर में दीपक जलाएं।
  • भगवान को ताजे फूल और फल अर्पित करें। 
  • धूप और अगरबत्तियां जलाएं। 
  • अंत में आरती करें।

भगवान विष्णु की आरती

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
 
ॐ जय जगदीश हरे।
 
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
 
ॐ जय जगदीश हरे।
 
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
 
ॐ जय जगदीश हरे।
 
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
 
ॐ जय जगदीश हरे।
 
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
 
ॐ जय जगदीश हरे।
 
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
 
ॐ जय जगदीश हरे।
 
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
 
ॐ जय जगदीश हरे।
 
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
 
ॐ जय जगदीश हरे।
 
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
 
ॐ जय जगदीश हरे।

भगवान विष्णु मंत्र

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥
 
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।
प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः॥
 
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
 
नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि ।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥

लक्ष्मी माता की आरती

ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥ 
ओम जय लक्ष्मी माता॥
 
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
मैया तुम ही जग-माता।।
 
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
 
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
मैया सुख सम्पत्ति दाता॥
 
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
 
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता। 
मैया तुम ही शुभदाता॥
 
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
 
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
मैया सब सद्गुण आता॥
 
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
 
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
मैया वस्त्र न कोई पाता॥
 
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
मैया क्षीरोदधि-जाता॥
 
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
 
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
मैया जो कोई जन गाता॥
 
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
 
ऊं जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता।
ऊं जय लक्ष्मी माता।।

माता लक्ष्मी मंत्र 

ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नमः:।।
 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
 
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥
 
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य
 

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