Difference between vat savitri and vat purnima : वट सावित्री व्रत और वट पूर्णिमा व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इस दिन महिलाएं पति की लंब आयु और घर की सुख-शांति के लिए यह व्रत रखती हैं। इन दोनों ही दिन बरगद (वट) के पेड़ की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। इन दोनों व्रत में कुछ समानताएं है और कुछ अंतर भी है। एक व्रत अमावस्या तिथि को और दूसरी बार पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। आइए दोनों व्रत के बारे में विस्तार से जानें।
वट सावित्री व्रत
यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है। यह व्रत मुख्य रुप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश में रखा जाता है। इस दिन सत्यवान और सावित्री की कथा सुनी जाती है। महिलाएं व्रत की पूजा करती हैं परिक्रमा करती हैं और धागा लपेटती हैं। वट वृक्ष की जड़ों में जल अर्पित किया जाता है। साथ ही वृक्ष पर रोली, मोली, फल और मिठाई चढ़ाई जाती है।
वट पूर्णिमा व्रत
ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा व्रत रखा जाता है। महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के अन्य हिस्सों में यह व्रत रखा जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाओं द्वारा रखा जाता है। इस व्रत के दौरान वट वृक्ष की पूजा की जाती है। कथा सुनना और परिक्रमा की जाती है। इस महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं।
वट सावित्री व्रत और वट पूर्णिमा व्रत में समानताएं
इन दोनों ही व्रत में विधिपूर्वक बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। यह दोनों व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण मानें जाते हैं। पति की लंबी आयु, वैवाहिक जीवन की सुख-शांति के लिए यह व्रत रखा जाता है। महिलाएं यह व्रत धैर्य, साहस और श्रद्धा के साथ रखती हैं। इन दोनों व्रत के दौरान कुछ खास नियमों का पालन किया जाता है। इस दोनों व्रत में सावित्री-सत्यवान की कथा सुनी और पढ़ी जाती है।
डिस्क्लेमर- इस लेख में दी गई जानकारी इंटरनेट, लोक मान्यताओं और अन्य माध्यमों से ली गई है। जागरण टीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है।