Dussehra 2024: दशहरे का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत और असत्य पर सत्य के प्रतीक के रुप में मनाया जाता है। इस नि भगवान राम ने लंकापति रावण का वध करके इस धरती पर सत्य की स्थापना की थी। रावण कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले बनाए जाते हैं। इन पुतलों दहन किया जाता है। दहन के बाद रावण की राख को घर ले जाया जाता है। वहीं कई जगह पर रावण दहन नहीं किया जाता बल्कि रावण की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह के बारे में।
रावण दहन के बाद रावण की राख को घर ले जाने के कई कारण हैं। रावण की अस्थियों को लाने से यह प्रेरणा मिलती है कि हमें अपने अंदर की बुराइयों को दूर करना चाहिए। साथ ही रावण की राख को माथे पर भी लगाया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से शत्रुओं पर विजय मिलती है। साथ ही आपके भीतर सकारात्मकता आती है। यदि रावण दहन की लकड़ी को घर में किसी शुभ स्थान पर रखें या फिर तिजोरी में रखें तो आर्थिक संकट दूर होंगे। इसके अलावा अपने घर को बुरी नजर से बचाने के लिए रावण दहर की राख को घर के चारों और घूमाकर फेंकने सकते हैं। ऐसा करने से बिगड़े काम भी बन जाते हैं।
जहां एक तरफ दशहरे के दिन पूरे भारत में रावण के पुतले जलाए जाते हैं। वहीं दूसरी और भारत के कई इलाके ऐसे हैं जहां रावण की पूजा की जाती है। रावण चारों वेदों का ज्ञानी और शिव भक्त था। इसके बाद भी उसने सीता हरण जैसा महापाप किया। इस पाप के कारण श्री राम ने रावण का वध किया। भारत में कई ऐसी जगहां हैं जहां रावण की पूजा की जाती है।
उत्तर प्रदेश के बिसरख में रावण दहन नहीं किया जाता है कहा जाता है इस जगह रावण का जन्म हुआ था। इस जगह का नाम रावण के पिता ऋषि विश्रवा के नाम पर रखा गया है। यहां रावण के पिता और रावण की पूजा की जाती है।
मान्यता है कि रावण ने भगवान शिव को बैजनाथ कांगड़ा में ही कठिन तपस्या करके प्रसन्न किया था। इसलिए वहां के लोग रावण दहन नहीं करते बल्कि रावण की पूजा करते हैं।
राजस्थान के जोधपुर के मौदगिल में रावण दहन नहीं किया जाता बल्कि रावण की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है और पूजा भी की जाती है।