Hanuman Jayanti 2025 Puja Vidhi: हनुमान जन्मोत्सव पर ऐसे करें पवन पुत्र की पूजा, जानें पूजा विधि, मंत्र, आरती और हनुमान चालीसा

10 Apr, 2025
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Hanuman Jayanti 2025 Puja Vidhi: हनुमान जन्मोत्सव को हनुमान भक्त बहुत धूमधाम से मनाते हैं। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस साल 12 अप्रैल को हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाएगा। इस दिन पूरे विधि-विधान से भगवान हनुमान की पूजा की जाती है। पूजा करने से बल, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति होती है और सारी परेशानियां दूर होती है। हनुमान जन्मोत्सव पर करें भगवान की पूजा, जानें आरती, मंत्र और हनुमान चालीसा।

हनुमान जी पूजा विधि

  • हनुमान जन्मोत्सव के दिन ब्रह्म मुहूर्त उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। 
  • हनुमान जी पूजा करें उन्हें सिंदूर, लाल फूल, तुलसी दल, चोला और चमेली का तेल अर्पित करें।
  • इसके बाद हनुमान जी को फूल, फल, मिठाई, और बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। 
  • अंत में आरती करें और मंत्रों का जाप करें। 
  • हनुमान चालीसा और सुंदरकांड करें।

हनुमान जी मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं हनुमते श्री रामदूताय नमः
 
ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय पच्चवदनाय पूर्वमुखे सकलशत्रुसंहारकाय रामदूताय स्वाहा।
 
ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय देवदानवर्षिमुनिवरदाय रामदूताय स्वाहा।
 
ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय अक्षिशूलपक्षशूल शिरोऽभ्यन्तर
शूलपित्तशूलब्रह्मराक्षसशूलपिशाचकुलच्छेदनं निवारय निवारय स्वाहा।
 
ऊँ दक्षिणमुखाय पंचमुखहनुमते करालवदनाय नारसिंहाय
ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा।
 
ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय वज्रदेहाय वज्रनखाय वज्रमुखाय
वज्ररोम्णे वज्रदन्ताय वज्रकराय वज्रभक्ताय रामदूताय स्वाहा।
 
ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहरणाय
सर्वरोगहराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।

हनुमान जी की आरती

आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
 
जाके बल से गिरिवर कांपे।
रोग दोष जाके निकट न झांके।।
 
अंजनि पुत्र महाबलदायी
संतान के प्रभु सदा सहाई।।
 
दे बीरा रघुनाथ पठाए।
लंका जारी सिया सुध लाए।।
 
लंका सो कोट समुद्र सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई।।
 
लंका जारी असुर संहारे।
सियारामजी के काज संवारे।।
 
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।
आणि संजीवन प्राण उबारे।।
 
पैठी पताल तोरि जमकारे।
अहिरावण की भुजा उखाड़े।।
 
बाएं भुजा असुर दल मारे।
दाहिने भुजा संतजन तारे।।
 
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे।
जै जै जै हनुमान उचारे।।
 
कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरती करत अंजना माई।।
 
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई।
तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।।
 
जो हनुमानजी की आरती गावै।
बसी बैकुंठ परमपद पावै।।

हनुमान चालीसा

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि।
बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
 
चौपाई
 
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
 
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
 
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
 
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुँचित केसा।।
 
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।
कांधे मूंज जनेउ साजे।।
 
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन।।
 
बिद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
 
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
 
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
 
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचन्द्र के काज संवारे।।
 
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
 
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
 
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।
 
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
 
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
 
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
 
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
 
जुग सहस्र जोजन पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
 
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
 
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
 
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
 
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रच्छक काहू को डर ना।।
 
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
 
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
 
नासै रोग हरे सब पीरा।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
 
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
 
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।।
 
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै।।
 
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
 
साधु संत के तुम रखवारे।।
असुर निकन्दन राम दुलारे।।
 
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
 
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
 
तुह्मरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।
 
अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।
 
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
 
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
 
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
 
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
 
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
 
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।
 
दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
 

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