2023 Independence Day Poems & Shayari in Hindi: 15 अगस्त का जश्न भारत के कौने-कौन में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। स्कूलों, कॉलेजों और ऑफिसों में भी इस दिन चहल-पहल रहती है। आप भी आज़ादी के इस पावन मौके पर कविता या शायरी सुनाकर महफिल में रौनक ला सकते हैं। आइए देखें कुछ मशहूर कवियों व शायरों की कविताएं और शायरी
पंद्रह अगस्त का दिन कहता: आज़ादी अभी अधूरी है।
सपने सच होने बाकी है, रावी की शपथ न पूरी है॥
जिनकी लाशों पर पग धर कर आज़ादी भारत में आई,
वे अब तक हैं खानाबदोश ग़म की काली बदली छाई॥
कलकत्ते के फुटपाथों पर जो आँधी-पानी सहते हैं।
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं॥
हिंदू के नाते उनका दु:ख सुनते यदि तुम्हें लाज आती।
तो सीमा के उस पार चलो सभ्यता जहाँ कुचली जाती॥
इंसान जहाँ बेचा जाता, ईमान ख़रीदा जाता है।
इस्लाम सिसकियाँ भरता है, डालर मन में मुस्काता है॥
भूखों को गोली नंगों को हथियार पिन्हाए जाते हैं।
सूखे कंठों से जेहादी नारे लगवाए जाते हैं॥
लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है काली छाया।
पख्तूनों पर, गिलगित पर है ग़मगीन गुलामी का साया॥
बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है।
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥
दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुन: अखंड बनाएँगे।
गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएँगे॥
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें॥
कविता- सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
कवि- इक़बाल
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा
ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा
गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
यूनान-ओ-मिस्र-ओ- रोमा, सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा
‘इक़बाल’ कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा
कविता- पुष्प की अभिलाषा
कवि- माखनलाल चतुर्वेदी
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक
कविता- होंठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा होदौलत न अता करना मौला
शोहरत न अता करना मौला
बस इतना अता करना, चाहे
जन्नत न अता करना मौला
शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुरबान पतंगा हो
होंठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
बस एक सदा ही सुनें सदा
बर्फीली मस्त हवाओं में
बस एक दुआ ही उठे सदा
जलते-तपते सहराओं में
जीते जी इसका मान रखें
मर कर मर्यादा याद रहे
हम रहें कभी ना रहें, मगर
इसकी सज-धज आबाद रहे
गोधरा न हो, गुजरात न हो, इंसान न नंगा हो
होंठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
गीता का ज्ञान सुनें न सुनें
इस धरती का यश-गान सुनें
हम सबद-कीर्तन सुन न सकें
भारत मां का जयगान सुनें
परवरदिगार, मैं तेरे द्वार पर ले पुकार ये आया हूं
चाहे अज़ान ना सुनें कान, पर
जय-जय हिन्दुस्तान सुनें
जन मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होंठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो।
शायर- अशफाक उल्ला खां
शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा
शायर– लाल चन्द फ़लक
दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी
शायर- अल्ताफ़ मशहदी
फिर दयार-ए-हिन्द को आबाद करने के लिए
झूम कर उट्ठो वतन आज़ाद करने के लिए
शायर- बिस्मिल अज़ीमाबादी
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
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