Kabir Das Jayanti 2022: संत कबीर के कुछ प्रसिद्ध दोहे, हिंदी में भावार्थ: सहित

13 Jun, 2022
Kabir Das Jayanti 2022: संत कबीर के कुछ प्रसिद्ध दोहे, हिंदी में भावार्थ: सहित

Kabir Das Jayanti 2022: संत कबीर दास जयंती को ज्येष्ठ पूर्णिमा पर हिंदू वैदिक कैलेंडर के अनुसार पंचांग के नाम से जाना जाता है। इस साल यह दिन 14 जून यानी मंगलवार को पड़ रहा है। कबीर दास एक प्रसिद्ध समाज सुधारक, कवि और संत थे। उनके काम का प्रमुख हिस्सा पांचवें सिख गुरु, गुरु अर्जन देव द्वारा लिया गया था। कबीर दास के लेखन का भक्ति आंदोलन पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा और इसमें कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, बीजक और सखी ग्रंथ जैसे शीर्षक शामिल हैं। इस कबीर दास जयंती के खास मौके पर पढ़ें उनके कुछ दोहे।

 

संत कबीर के दोहे भावार्थ सहित

 दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।

जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।

भावार्थ: 

दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं। अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं।

 

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।

बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥

भावार्थ: 

कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।

 

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।

भावार्थ: 

कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।

 

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।

भावार्थ: 

कबीर दास जी कहते हैं कि लोग बड़ी से बड़ी पढाई करते हैं लेकिन कोई पढ़कर पंडित या विद्वान नहीं बन पाता। जो इंसान प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ लेता है वही सबसे विद्वान् है।

 

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

भावार्थ: 

मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है। अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु  आने पर ही लगेगा !

 

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

भावार्थ: 

न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।

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