Rabindranath Tagore Jayanti 2025: रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता में देबेंद्रनाथ टैगोर और सरदा देवी के घर हुआ था। इसलिए हर साल भारत के कई राज्यों में इस दिन रविंद्रनाथ जयंती मनाई जाती है लेकिन पश्चिम बंगाल में रवींद्र जयंती 2025 में 9 मई को मनाई जा रही है। रवींद्रनाथ टैगोर भारतीय साहित्य, कला और दर्शन के ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व थे। वह पहले भारतीय थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानिल किया गया साथ ही वह एकमात्र ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने दो देशों के राष्ट्रगान की रचना की है। इस वर्ष 164 वीं रवींद्रनाथ टैगोर जयंती मनाई जा रही है। आइए जानते हैं रविंद्रनाथ टैगोर के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।
रवींद्रनाथ टैगोर का बचपन
रवींद्रनाथ टैगोर 14 भाई बहन थे। घर में वह सबसे छोटे थे। उनके पिता का नाम देवेंद्रनाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी था। वह पढ़ाई में काफी अच्छे थे। उनकी शुरुआती पढ़ाई सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी। इसके बाद वह 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजस्टोन पब्लिक स्कूल चले गए। लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की हलांकि वह लंदन से अपनी पढ़ाई पूरी न कर सके और 1880 में बिना डिग्री लिए ही भारत आ गए। टैगोर बैरिस्टर बनना चाहते थे लेकिन उनकी रुचि कविताओं और कहानियों में थी।
रवींद्रनाथ टैगोर का करियर
रवींद्रनाथ टैगोर ने मात्र आठ साल की आयु में अपनी पहली कविता लिखी थी। बचपन से ही उनकी रुचि कविताएं और कहानियां लिखने में थी। 16 साल की आयु में रविंद्रनाथ की पहली लघुकथा प्रकाशित हुई थी। वह लंदन अपनी पढ़ाई करने चले गए लेकिन जब वह बिना डिग्री लिए ही भारत आए जो उन्होंने दोबारा से अपना लेखन कार्य आरंभ किया।
रवींद्रनाथ टैगोर की उपलब्धियां
रवींद्रनाथ टैगोर को उनकी काव्य कृति गीतांजलि के लिए उन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। वह न सिर्फ पहले भारतीय बल्कि पहले एशियाई व्यक्ति थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 1915 में ब्रिटिश सरकार ने नाइटहुड की उपाधि दी, लेकिन 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में उन्होंने यह सम्मान लौटा दिया। वह दुनिया में एकमात्र व्यक्ति थे जिन्होंने दो देशों का राष्ट्रगान लिखा। उन्होंने भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ की रचना की थी। उन्होंने 1901 में शांतिनिकेतन प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की थी यह बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में था। साल 1921 में यह विद्यालय विश्व भारती विश्वविद्यालय बन गया।