Parshuram Jayanti 2025: वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी को समर्पित होती है। इस दिन परशुराम जी की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि परशुराम की पूजा से शत्रु, भय, संकट से मुक्ति मिलती है। आइए जानते हैं भगवान परशुराम की आरती, स्तुति और मंत्र।
भगवान परशुराम की आरती
शौर्य तेज बल-बुद्धि धाम की॥
रेणुकासुत जमदग्नि के नंदन।
कौशलेश पूजित भृगु चंदन॥
अज अनंत प्रभु पूर्णकाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥
नारायण अवतार सुहावन।
प्रगट भए महि भार उतारन॥
क्रोध कुंज भव भय विराम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥
परशु चाप शर कर में राजे।
ब्रह्मसूत्र गल माल विराजे॥
मंगलमय शुभ छबि ललाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥
जननी प्रिय पितृ आज्ञाकारी।
दुष्ट दलन संतन हितकारी॥
ज्ञान पुंज जग कृत प्रणाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥
परशुराम वल्लभ यश गावे।
श्रद्घायुत प्रभु पद शिर नावे॥
छहहिं चरण रति अष्ट याम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥
आरती
ऊॅं जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
ऊॅं जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी॥
ऊॅं जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
जमदग्नी सुत नरसिंह, मां रेणुका जाया।
मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया॥
ऊॅं जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
कांधे सूत्र जनेऊ, गल रुद्राक्ष माला।
चरण खड़ाऊँ शोभे, तिलक त्रिपुण्ड भाला॥
ऊॅं जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
ताम्र श्याम घन केशा, शीश जटा बांधी।
सुजन हेतु ऋतु मधुमय, दुष्ट दलन आंधी॥
ऊॅं जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
मुख रवि तेज विराजत, रक्त वर्ण नैना।
दीन-हीन गो विप्रन, रक्षक दिन रैना॥
ऊॅं जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
कर शोभित बर परशु, निगमागम ज्ञाता।
कंध चार-शर वैष्णव, ब्राह्मण कुल त्राता॥
ऊॅं जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
माता पिता तुम स्वामी, मीत सखा मेरे।
मेरी बिरत संभारो, द्वार पड़ा मैं तेरे।।
ऊॅं जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
अजर-अमर श्री परशुराम की, आरती जो गावे।
पूर्णेन्दु शिव साखि, सुख सम्पति पावे॥
ऊॅं जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
परशुराम स्तुति
कुलाचला यस्य महीं द्विजेभ्यः प्रयच्छतः सोमदृषत्त्वमापुः।
बभूवुरुत्सर्गजलं समुद्राः स रैणुकेयः श्रियमातनीतु॥
नाशिष्यः किमभूद्भवः किपभवन्नापुत्रिणी रेणुका
नाभूद्विश्वमकार्मुकं किमिति यः प्रीणातु रामत्रपा।
विप्राणां प्रतिमंदिरं मणिगणोन्मिश्राणि दण्डाहतेर्नांब्धीनो
स मया यमोऽर्पि महिषेणाम्भांसि नोद्वाहितः॥
पायाद्वो यमदग्निवंश तिलको वीरव्रतालंकृतो
रामो नाम मुनीश्वरो नृपवधे भास्वत्कुठारायुधः।
येनाशेषहताहिताङरुधिरैः सन्तर्पिताः पूर्वजा
भक्त्या चाश्वमखे समुद्रवसना भूर्हन्तकारीकृता॥
द्वारे कल्पतरुं गृहे सुरगवीं चिन्तामणीनंगदे पीयूषं
सरसीषु विप्रवदने विद्याश्चस्रो दश॥
एव कर्तुमयं तपस्यति भृगोर्वंशावतंसो मुनिः
पायाद्वोऽखिलराजकक्षयकरो भूदेवभूषामणिः॥
मंत्र
ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्॥
ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्॥
ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:॥